कानपुर
में जन्मी और
बनारस हिंदु
विश्वविद्यालय
के अकादमिक
माहौल में
पली-बढ़ी
रागिनी को विरासत
में न केवल
संगीत वरन
संगीत-शास्त्र
की समझ और इस
ज्ञान�धारा के
प्रति कर्तव्य�परायणता,
पिता सन्गीतेन्दु
पण्डित
लालमणि मिश्र
और अग्रज डॉ.
गोपाल-शंकर
मिश्र से प्राप्त
हुई। लगभग
लुप्त-प्राय:
विचित्र वीणा
को पिता डॉ.
लालमणि मिश्र
ने विश्व के
समक्ष परम
वीणा के पद पर
स्थापित
किया। गायन अवलंबित
वादन को मुक्त
कर,�
वाद्य-उपयुक्त
�शैली �मिश्रबानी� से पुष्ट
किया। पिता
द्वारा
प्रतिपादित
वीणा-वादन को
पुत्र डॉ.
गोपाल शंकर ने
विश्व भर में
प्रचलित
किया।
परम्परागत दायित्वों के निर्वहन में डॉ. रागिनी त्रिवेदी ने जल-तरन्ग, सितार के वादन, शिक्षण के साथ-साथ भारतीय संगीत की वैश्विक समझ विकसित करने के लिये आधुनिक तकनीक का पूर्ण उपयोग किया। चुनिंदा कार्यक्रमों में प्रस्तुति देने का लक्ष्य भी अप्रचलित रागों को रसिकों को उपलब्ध कराना ही रहा। सिंदूरा, मधुकली, सामेश्वरी, मियाँ की मल्हार, मधु-कौंस, कौशी- भैरव, अहीर-ललित, गौरी, देव-गिरी बिलावल जैसे अनेक अल्प-श्रवणित राग श्रोताओं को विभोर कर गये। लगभग 27 रागों को समेटे सितार-प्रस्तुति �षोडश-पुष्प� सम से लेकर सोलहवीं मात्रा से आरंभ होने वाली बंदिशों की अद्भुत संयोजना है।
नि:शुल्क संगीत-शिक्षण हेतु वैब-साइट (www.omenad.net) का संचालन; सितार, वीणा हेतु दृश्य-स्वर पाठ; भारतीय संगीत के शास्त्रीय स्वरूप सम्बंधी जिज्ञासा का समाधान; भातखण्डे स्वर-लिपि को कम्प्यूटर उपयुक्त बनाने हेतु सॉफ़्ट-वेयर एवं चिह्न-आधारित �ओम स्वर-लिपि�; वाद्यों, विधाओं पर केंद्रित अनेक वृत्त-चित्र; �राग-विबोध मिश्रबानी� (भाग 1 व 2) तथा �Sitar Compositions in Ome Swarlipi�� पुस्तकों का लेखन। �मिश्रबानी� की तकनीक व शैली शिक्षण हेतु एक, तीन, सात व नौ दिवसीय कार्य-शाला �तंत्रीचर्या� का संयोजन। सितार, जल-तरंग और विचित्र-वीणा पर सिद्ध-हस्त अधिकार के कारण रागिनी त्रिवेदी को �त्रिवाद्यी�, �त्रिवादिनी� �जैसे विशेषणों से विभूषित �किया जा रहा है। वे पिता सन्गीतेन्दु लालमणि मिश्र और अग्रज डॉ. गोपाल-शंकर मिश्र द्वारा बजाए गए इस पैंसठ वर्षीय वाद्य को इस के प्राचीन नाम �घोषवती वीणा� से पुकारती हैं। अक्तूबर 2013 में �आयोजित डॉ मल्लिकार्जुन मंसूर स्मृति समारोह में उनके घोषवती वादन से ही धारवाड़ के श्रोता इस वाद्य से परिचित हुए। इस के पूर्व उत्तर-भारतीय विचित्र वीणा को वहां कभी नहीं सुना गया था।